संवाददाता। मिथिलेश कुमार भारद्वाज।
सोनभद्र।जिले में चर्चा जोरों पर सवाल यह भी उठ रहा कि जब वैध परिमिट या अवैध परमिट तो जांच चौकी पर बार कोड से जांच कर छोड़ने वाले जिम्मेदार के ऊपर कार्यवाही क्यों नही हुई। जिम्मेदार तो वे भी रहे जिन्होंने इसको सह दिया। यूपी के चर्चित जिला सोनभद्र का खनन आए दिन चर्चा में रहते चले आ रहा है जहां खनन कर्ताओं द्वारा पत्थर खदानो को पहले ही मौत का कुँवा बना कर खनन क्षेत्र अब पानी का भी पैसा परमिट के नाम काटा जा रहा। जनपद में कही निर्धारित मात्रा से अधिक खनन के चलते जहां परमिट को लेकर मारामारी की स्थिति बनी हुई है। वहीं कुछ पट्टाधारक, कुछ क्रशर संचालक और कुछ लाइजनर एक सिंडीकेट बनाकर परमिट की उंची कीमत वसूलने में लगे हुए हैं। बिल्ली मारकुंडी स्थित खनन क्षेत्रों में जहाँ खादान में लगभग 100 फिट से कही ज्यादा पानी भरा हुआ है। उस खादान का भी परमिट खनन व्यवसाई, व क्रशर की मिली भगत में उचे दाम लेकर धड़ल्ले से जारी हो रहा है। इस कार्य मे खनन विभाग की संलिप्तता झलक रही जो चीख चीख कर बया कर रही है कि अवैध खनन इस सरकार में रोकना मुश्किल ही नही नामुमकिन है । कुछ समय पहले ही खनन करने से ज्यादा मात्रा में परमिट बिक्री को लेकर खादान के ऊपर जुर्माने के साथ कार्यवाही हुई थी। फिरभी विभाग का हौसला बुलंद है। सोनभद्र के ओबरा तहसील अंतर्गत बिल्लीमारकुंडी और डाला खनन क्षेत्र में कुछ पट्टाधारकों, क्रशर संचालकों और परमिट को लेकर लाइजनिंग करने वाले गैंग की मिलीभगत से, कई गुना अधिक कीमत पर परमिट बेचे जाने का बड़ा खेल खेले जाने का, कथित मामला सामने आने के बाद हड़कंप मच गया था। वही निर्धारित मात्रा से अधिक खनन के चलते जहां परमिट को लेकर मारामारी की स्थिति बनी हुई है। वहीं कुछ पट्टाधारक, कुछ क्रशर संचालक और कुछ लाइजनर एक सिंडीकेट बनाकर परमिट की उंची कीमत वसूलने में लगे हुए हैं। परमिट को लेकर हाहाकार की स्थिति को देखते हुए, कभी खान विभाग से मिलती-जुलती वेबसाइट संचालित कर तो कभी एक्सपायर हो चुकी लाइसेंस आईडी की आड़ में परमिट जारी कर मोटा मुनाफा कमाने का खेल भी खेला जा रहा है। कुछ दिन पूर्व ही, एक्सपायर आईडी पर परमिट जारी करने के हुए खुलासे के बाद जहां हड़कंप की स्थिति बनी हुई है। वहीं लेकर ज्येष्ठ खान अधिकारी की तरफ से दर्ज कराई गई एफआईआर के बाद परमिट के गोरखधंधे से जुड़े पूरे रैकेट के खुलासे की मांग उठने लगी थी। लेकिन संबंधित विभाग द्वारा केवल खानापूर्ति कर समय व्यतीत में लगे हुए वहीं सरकार की छवि को धूमिल कर संचालक जेब भरने में लगे हुए है।