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Bareilly Latest News: बरेली के खटवानी परिवार के पास पाकिस्तान में उनकी पुश्तैनी जमीन के दस्तावेज हैं, जो चार पीढ़ियों से सुरक्षित हैं. ये सिर्फ कागज़ नहीं, बल्कि जड़ों, संघर्ष और उम्मीद की कहानी हैं, जो हमें हमारी विरासत से जोड़ती हैं.
पूर्वजों के दस्तावेज (प्रतीकात्मक तस्वीर)यह जमीन 14 अगस्त 1947 से ठीक 23 दिन पहले, टंडो अलई में खरीदी गई थी. हालांकि परिवार ने उस जगह कभी कदम नहीं रखा, लेकिन दस्तावेज हमेशा उनके साथ रहे.
बरेली के रहने वाले दुकानदार दुर्गेश खटवानी बताते हैं कि उनके दादा, देवनदास खटवानी, सिंध के जमींदार थे और उनके पास कई एकड़ जमीनें थीं. उस समय देश में विभाजन की चर्चाएं हो रही थीं, लेकिन लोग मानते थे कि देश का बंटवारा नहीं होगा. उसी भरोसे दादा ने विभाजन से पहले जमीन का बैनामा बनवा लिया और विभाजन के बाद पूरा परिवार भारत आ गया.
वह आगे बताते हैं कि उनकी फैमिली ने कई बार पाकिस्तान जाकर अपने पूर्वजों की जमीन देखने की कोशिश की, लेकिन किसी कारणवश ये संभव नहीं हो पाया. दुर्गेश कहते हैं, “हमारे दिल में हमेशा एक अधूरी ख्वाहिश है कि हम अपनी पूर्वजों की जमीन देखें. हालात को देखते हुए हमने आगे कदम नहीं बढ़ाए.”
दस्तावेजों में छुपी पुरानी यादें
खटवानी परिवार के पास आज भी जमीन के दर्जनों रजिस्ट्री के डाक्यूमेंट्स रखे हैं. इनमें कुछ पर 50 पैसे के स्टांप लगे हैं, तो कुछ पर 50 रुपये तक. सभी डॉक्यूमेंट्स पर टंडो अलई की मुहर लगी है. दुर्गेश बताते हैं, “पिताजी अक्सर कहते थे कि ये दस्तावेज हमारे पूर्वजों की जमीन की आखिरी निशानी हैं. इन्हें संभाल कर रखना बहुत जरूरी है.”
समय के साथ ये दस्तावेज सिर्फ कागज़ नहीं रहे, बल्कि परिवार की यादों, संघर्ष और उम्मीदों का प्रतीक बन गए हैं. इसका हर एक पन्ना अपने में कहानी समेटे हुए है और आने वाली पीढ़ियों को यह याद दिलाता है कि हमारी जड़ें और हमारी विरासत हमेशा हमारे साथ रहती हैं.

पिछले 5 साल से मीडिया में सक्रिय, वर्तमान में News18 हिंदी में कार्यरत. डिजिटल और प्रिंट मीडिया दोनों का अनुभव है. मुझे लाइफस्टाइल और ट्रैवल से जुड़ी खबरें लिखना और पढ़ना पसंद है.
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