देमहाराष्ट्र के परभणि में जो कुछ हुआ उस पर वहां के लोगों ने नाराजगी जताई.आंदोलन और प्रदर्शन किए.कानून अपना काम कर रहा है. दोषियों को आज नहीं तो कल सजा मिलेगी ही. इस मसले पर बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने भी कड़ा बयान दिया है. बयान देने पर किसी को आपत्ति नहीं है. दलित हितों का सवाल है तो बहुजन समाज पार्टी की ओर से आवाज आएगी ही. लेकिन अखरता ये है कि उत्तर प्रदेश में मायावती अपने पुराने तेवर क्यों नहीं दिखा पा रही हैं.
लोकसभा चुनाव में आकाश को ‘डिरेल’ किया था
लोगों को अभी भूला नहीं होगा कि लोकसभा चुनावों के दौरान उन्होंने अपने भतीजे आकाश को पार्टी की जिम्मेदारी दी थी. आकाश ने एग्रेसिव तरीके से प्रचार प्रसार शुरु कर दिया. अचानक पार्टी सुप्रीमों ने आकाश की स्पीड पर ब्रेक लगा दिया. यही नहीं उन्हें चुनावों तक किनारे पार्क भी कर दिया था. नतीजा ये रहा कि जो फायदा बहुजन समाज पार्टी को लोकसभा चुनावों के दौरान मिलना चाहिए था उसकी मलाई समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को हासिल हुई. आरक्षण मसले पर बिदके दलित वोटरों ने एसपी कांग्रेस का साथ दिया. नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस को छह और एसपी को 37 सीटें हासिल हुईं.
एसपी -कांग्रेस मतभेद के बाद की स्थिति
राज्य विधान सभाओं के चुनाव और यूपी में उपचुनाव हुए तो कांग्रेस एसपी लोकसभा चुनाव जैसा कोई नैरेटिव खड़ा ही नहीं कर सकी. नतीजा ये रहा कि उसे कहीं सफलता नहीं मिली. उत्तर प्रदेश में भी वे सीटें भी बीएसपी की झोली में जा गिरीं जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या हिंदु वोटरों की तुलना में ज्यादा थी. इन सबका एक असर ये भी देखने को मिला कि इंडिया गठबंधन में दरारें दिखने लगीं. एसपी और कांग्रेस के रिश्ते भी पहले जैसे न रहे. इस सबको देखते हुए विश्लेषकों को लगने लगा था कि अब राज्य में बहुजन समाज पार्टी अपनी ताकत बढ़ा कर मौके का फायदा उठाएगी. लेकिन अभी तक मायावती या फिर बीएसपी की ओर से कुछ ऐसा नहीं किया गया जिसे देख कर कहा जा सके कि पार्टी फिर से अपने पैर जमाने के लिए कुछ कर रही हो.
लोकसभा चुनावों का एक नतीजा और सामने आया था. चंद्रशेखर आजाद की जीत के तौर पर. बहुजन समुदाय की रहनुमाई कर रहे चंद्रशेखर ने दिखा दिया कि उनकी पश्चिमी इलाके में ठीक ठाक पकड़ कायम हो गई है. उन्होंने चुनाव भी जीत लिया. ऐसे में एक संभावना ये भी दिख रही थी कि जैसे कांसीराम ने मायावती को मौका दिया था उसी तरह से वे चंद्रशेखर को बीएसपी की जमीन पर ला कर पार्टी को मजबूत करेंगी. हालांकि पार्टियों के प्राइवेट कंपनियो की तरह चलाए जाने के इस दौर में ये थोड़ी दूर की कौड़ी थी. फिर भी ये तो हो ही सकता था कि मायावती चंद्रशेखर को अपने साथ ले सकती थी. लेकिन अब तक ऐसे भी कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं. अलबत्ता अलग अलग पार्टियों के साथ चंद्रशेखर के गठबंधन की खबरें मीडिया में आती रह रही हैं. मायावती के पुराने सिपहसालार स्वामी प्रसाद मौर्या ने भी दो दिन पहले साफ कर दिया कि वे बीएसपी में नहीं लौटेंगे. ऐसे में अगर मायावती को अपनी पार्टी का आधार मजबूत करना हो तो उन्हें देश के दूसरे हिस्सों पर महज बयान देने की जगह उत्तर प्रदेश में अपने खो गए जनाधार को तलाशना होगा.
FIRST PUBLISHED : December 12, 2024, 18:03 IST