परिजनों का कहना था कि अनुमंडलीय अस्पताल में जब बच्चे का जन्म हुआ तो उसे मामूली समस्या थी। नवजात का इलाज बाहर कराना था, लेकिन एक आशा कार्यकर्ता उन लोगों को बहला फुसलाकर निजी क्लीनिक ले आई, जहां डॉक्टर ने नवजात को जांच करने के बाद कहा कि बच्चे को हम ठीक कर देंगे। तत्काल 70 हजार रुपए जमा करवा लिया।
बिहार के निजी अस्पतालों में दलाली का खेल धड़ल्ले से जारी है। सरकारी अस्पतालों से मरीजों को फंसाकर दलाल प्राइवेट हॉस्पिटल में ले जाते हैं जहां जमकर वसूली की जाती है। सुपौल में इसका खुलासा हआ है। त्रिवेणीगंज नगर परिषद क्षेत्र के एक निजी क्लीनिक में इलाज के दौरान नवजात की मौत के बाद परिजनों ने जमकर हंगामा किया। आक्रोशित परिजन नवजात के इलाज में लापरवाही का आरोप लगा रहे थे। मरीज के एक आशा कार्यकर्ता सरकारी अस्पताल से ले आई थी। अस्पताल में कोई डॉक्टर भी नहीं था।
बताया जाता है कि कुकुरधरी मेंही नगर वार्ड 10 निवासी गौतम कुमार की पत्नी बेबी देवी अनुमंडलीय अस्पताल में नवजात को जन्म दिया। जन्म केबाद नवजात की तबियत बिगड़ने पर 8 सितंबर को आशा कार्यकर्ता के बहकावे में आकर नवजात को परिजनों ने निजी क्लीनिक में भर्ती कराया। छह दिन बाद नवजात की मौत हो गई। नवजात के मौत की सूचना मिलते ही आक्रोशित परिजन क्लीनिक पहुंच कर हंगामा करने लगे।
परिजनों का कहना था कि अनुमंडलीय अस्पताल में जब बच्चे का जन्म हुआ तो उसे मामूली समस्या थी। नवजात का इलाज बाहर कराना था, लेकिन एक आशा कार्यकर्ता उन लोगों को बहला फुसलाकर निजी क्लीनिक ले आई, जहां डॉक्टर ने नवजात को जांच करने के बाद कहा कि बच्चे को हम ठीक कर देंगे, आप तत्काल 70 हजार रुपए जमा कीजिए। परिजनों ने आरोप लगाया कि जमीन गिरवी रखकर 70 हजार रुपए जमा करा दिया, लेकिन लगातार छह दिनों तक बच्चा क्लीनिक में भर्ती रहा। इस दौरान डॉक्टर के बदले उनका स्टाफ बच्चे का इलाज करता रहा। शनिवार सुबह बच्चे की मौत हो गई।
क्या कहते हैं सिविल सर्जन?
उधर, सीएस डॉ. ललन ठाकुर ने बताया कि अभी वह फिल्ड में हैं। मामले की जानकारी ली जा रही है। एसीएमओ ने इस मामले पर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया और कहा कि यह हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर है। इसमें हम कुछ भी नहीं बता सकते हैं।
बच्चे को सांस लेने में थी परेशानी
क्लीनिक के कम्पाउंडर ने बताया कि नवजात को सांस लेने में परेशानी थी, जिसे छह दिन पहले यहां भर्ती किया गया था। शनिवार को उसकी मौत हो गई है। बताया कि अभी यहां 12 नवजात भर्ती हैं और इलाजरत हैं। कहा कि अगर इन बच्चों को कोई परेशानी होती है तो तुरंत ही डॉक्टर से मोबाइल पर बात करते हैं और वह जो बताते हैं वह यहां इलाजरत बच्चे को देते हैं। डॉक्टर साहब यहां नहीं रहते हैं वह मधेपुरा में रहते हैं। इमरजेंसी पर डॉक्टर यहां आते हैं तब इलाज करते हैं।
41 हजार रुपए में तय हुआ मौत का सौदा
चर्चा है कि नवजात की मौत के बाद डॉक्टर की ओर से बीच-बचाव करने पहुंचे जनप्रतिनिधि और कुछ लोगों ने मौत का सौदा 41 हजार रुपए में तय किया। इसमें से 21 हजार रुपए डॉक्टर की अनुपस्थिति में डॉक्टर के स्टाफ और कंपाउंडर ने नगद मृतक के परिजन को दिया और 20 हजार रुपए पे फोन के माध्यम से दिया और फिर सबने मिलकर इस मामले को दबा दिया। उधर, नवजात की मौत के बाद परिजनों में कोहराम मच गया। मृतक नवजात की मां का रो-रोकर बुरा हाल था।