मध्य प्रदेश के उज्जैन में हर 12 वर्षों में एक बार महाकुंभ लगता है। इस बार महाकुंभ 2028 में उज्जैन के क्षिप्रा तट पर लगने वाला है। महाकुंभ की तैयारियों के बीच संतों ने ‘शाही स्नान’ शब्द पर आपत्ति जताते हुए नाम बदलने की मांग की है। कुछ संतों का कहना है कि यह शब्द इस्लामिक होने के साथ भारत पर मुगल साम्राज्य के प्रभाव को याद दिलाने वाली है। इसलिए इस शब्द को तुरंत हटाना चाहिए। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी महाराज ने कहा है कि 13 अखाड़ों के साथ मिलकर इस संबंध में चर्चा की जाएगी और नाम बदलने की रूपरेखा तैयार की जाएगी।
उज्जैन में निकलने वाली महाकाल की ‘शाही’ सवारी को लेकर भी इसी तरह का विवाद उठा था। इसके बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने शाही सवारी का नाम बदलकर ‘राजसी सवारी’ किया था। इसके बाद अब साधु संत उज्जैन में होने जा रहे सिंहस्थ कुंभ में ‘शाही स्नान’ का नाम बदलवाना चाहते हैं। अखाड़ा परिषद का कहना है कि सभी महामंडलेश्वर से चर्चा के बाद नाम बदलने के प्रस्ताव को प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के सामने रखा जाएगा।
निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर श्लेषानंद महाराज ने कहा कि जिसका शासन होता है उसकी कार्यप्रणाली आ जाती है यही। भारतवर्ष के साथ भी ऐसा ही हुआ। मध्यकाल में आक्रांताओं का कुछ इस तरह प्रभाव पड़ा कि उनकी भाषा की व्यापकता दैनिक जीवन की तरफ बढ़ गई। यदि किसी शब्द से पराधीनता, आतंक का आभास होता है तो हटा देना चाहिए। मध्यप्रदेश शासन का एक अच्छा कदम है कि उन्होंने महाकाल की ‘शाही सवारी’ का नाम बदल कर ‘राजसी सवारी’ रख दिया ऐसे ही अब महाकुंभ में शाही स्नान का नाम बदलकर अमृत स्नान, दिव्य स्नान रखा जा सकता है।
आह्वान अखाड़े के महामंडलेश्वर अतुलेशनंद महाराज ने कहा है कि शाही शब्द एक इस्लामिक शब्द है और मुगल आक्रंताओं द्वारा दिया गया शब्द है। यह गुलामी को दर्शाता सनातन धर्म में ऐसे शाही शब्द को हटाना चाहिए। प्राचीन परंपरा बनी रहनी चाहिए। भारतवर्ष आजाद है इसलिए ऐसे किसी शब्द का उपयोग नहीं करना चाहिए जिससे गुलामी जैसा लगे।