उत्तराखंड में सिलक्यारा सुरंग में पिछले 16 दिन से फंसे सभी 41 श्रमिकों को मंगलवार को सकुशल बाहर निकाल लिया गया। चारधाम यात्रा मार्ग पर निर्माणाधीन साढ़े चार किलोमीटर लंबी सिलक्यारा-बड़कोट सुरंग का 12 नवंबर को एक हिस्सा ढहने से उसमें फंसे श्रमिकों को निकालने के लिए युद्धस्तर पर अभियान चला रहे बचावकर्मियों को 17वें दिन यह सफलता मिली। उत्तराखंड की सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को बाहर निकाले जाने के अभियान की वैश्विक मीडिया ने सराहा है। इस बचाव अभियान का लाइव प्रसारण किया गया।
BBC ने पहले श्रमिक की तस्वीरें चलाई
बीबीसी ने बचाव अभियान पर नियमित रूप से अपडेट उपलब्ध कराते हुए खबर दी। सुरंग के बाहर, पहले व्यक्ति को सुरंग से निकालने की खबर मिलते ही उसने अपनी वेबसाइट पर एक तस्वीर अपलोड की जिसमें उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी और केंद्रीय मंत्री वीके सिंह सुरंग से निकाले गए पहले श्रमिक से मिलते नजर आ रहे हैं।
अल-जजीरा ने क्या कहा?
कतर स्थित समाचार चैनल अल-जजीरा ने खबर दी है कि करीब 30 किमी दूर स्थित अस्पताल में श्रमिकों को ले जाने के लिए सुरंग के पास एम्बुलेंस को तैनात रखा गया था। उसने कहा कि मजदूरों को पाइपों से बने मार्ग से बाहर निकाला जा रहा है।
मशीनरी पर इंसान की जीत; ब्रिटिश दैनिक ‘द गार्जियन’
ब्रिटिश दैनिक ‘द गार्जियन’ ने खबर दी कि सिल्कयारा-बारकोट सुरंग के प्रवेश द्वार से स्ट्रेचर से निकाले गए श्रमिकों का नाटकीय दृश्य 400 घंटे से अधिक समय के बाद आया। इस दौरान बचाव अभियान में कई अड़चनें आईं जिससे विलंब हुआ। अखबार ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट में कहा कि मानव श्रम ने मशीनरी पर विजय प्राप्त की क्योंकि विशेषज्ञ लोगों तक पहुंचने के लिए मलबे के अंतिम 12 मीटर की खुदाई हाथ से (मैन्युअल) में करने में कामयाब रहे।
भारतीय रैट माइनर्स की चर्चा
लंदन के ‘द टेलीग्राफ ने’ ने अपनी प्रमुख खबर में कहा कि सैन्य इंजीनियर और खनिकों ने एक श्रमसाध्य निकास मिशन को पूरा करने के लिए मलबे में ‘रेट होल’ ड्रिलिंग की। उत्तराखंड में 12 नवंबर को सुरंग का एक हिस्सा ढह गया, जिससे श्रमिक उसके अंदर फंस गए।
सीएनएन ने मैन्यूअल ड्रिलिंग को सराहा
सीएनएन ने घटनास्थल के वीडियो फुटेज में उत्तराखंड राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को उन श्रमिकों से मिलते हुए दिखाया गया है जिन्हें खुशी के माहौल के बीच सुरंग से निकाला गया था। श्रमिकों को बचाने के अभियान में कई रुकावटें आईं जब मलबे में खुदाई के लिए इस्तेमाल की जा रही भारी मशीनें खराब हो गईं और उसके बाद मलबे में आंशिक रूप से हाथों से खुदाई करनी पड़ी और अन्य जोखिमपूर्ण तरीकों का इस्तेमाल करना पड़ा।