संवाददाता। मिथिलेश कुमार भारद्वाज।
सोनभद्र- देश में आदिवासियों के विरोध में वन संरक्षण संशोधन अधिनियम-2023 लागू करके आदिवासीयों को बडे पैमाने पर बेदखल करने एवं विकास के नाम आदिवासीयों को जल, जंगल, मकान और जमीन के मालिकाना हक एवं अधिकार से वंचित करने के लिए बनाये जा रहे संसद द्वांरा असंवैधानिक कानूनों पर तत्काल रोक लगाने हेतु राष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद के कार्यकर्ताओं द्वारा संयुक्त रूप से भरत बंद का समर्थन करते हुए राष्ट्रपति के नाम उप जिलाधिकारी ओबरा तहसील में बुधवार को ज्ञापन सौंपा गया वहीं वक्ताओं ने कहा कि संविधान में आदिवासी समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रुप में पहचान प्राप्त है इसी पहचान के आधार पर तमाम प्रकार की सामाजिक, शैक्षणिक, धार्मिक, राजनितिक, सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित करने के लिए विभिन्न अनुच्छेदों और अनुसूचियों में अधिकार प्राप्त है। विडंबना यह है कि जिन तमाम विदेशी आक्रमणकारियों से लडते हुए गुलाम भारत में आदिवासी महापुरुषों ने जल, जंगल, जमीन में और अपनी संस्कृति को सुरक्षित करने के लिए जान की बाजी लगाई थी, लेकिन तथाकथित 1947 को मिली आजादी और हमें 1950 में मिले अधिकारों के बावजूद विकास के नाम पर, पर्यावरण संरक्षण के नाम एवं वन्य प्राणियों के संरक्षण के नाम पर आदिवासीयों को उनके जल, जंगल और जमीन से विस्थापित किया गया और उनका पुर्नवास करने का कोई ईमानदार प्रयास नहीं हुआ। जबकी संविधान में अनुच्छेद 244 के तहत अनुसूची 5 और 6 में उल्लेख है कि इन क्षेत्रों में केंद्रिय या राज्य सरकार को दखल देने का अधिकार नहीं होगा। बल्कि जनजाति मंत्रणापरिषद की स्थापना कर वही विकास की सारी संभावनाओं को जमीन पर उतारने का काम करें और उसका नियंत्रण प्रदेश में राज्यपाल और देश में राष्ट्रपति के अधीन होगा। लेकिन आदिवासियों के विरोध में वन संरक्षण संशोधन अधिनियम-2023 लागू करके आदिवासीयों को बडे पैमाने पर बेदखल करके जल, जंगल, मकान और जमीन के मालिकाना हक एवं अधिकार से वंचित करके संवैधानिक व्यवस्था के विरोध में राज्य और केंद्र की सरकारे लगातार आदिवासीयों के विरोध में कानून बनाकर आदिवासियों को बेदखल करने का काम कर रही है जिससे पूरे देश के आदिवासी अपने जल, जंगल और जमीन से बडे पैमाने पर विस्थापित हो रहे है। विस्थापन की वजह से 5 वी और 6 वी अनुसूची क्षेत्र समाप्त होने एवं आदिवासीयों की मूल पहचान, कला, सभ्यता, संस्कृति तथा उनके अस्तित्व पर एवं पर्यावरण को खतरा उत्पन्न हो गया है। बांसवाडा के आदिवासी सांसद राजकुमार रोत ने भी यह मामला संसद में उठाकर कहा कि केंद्र सरकार द्वारा विगत 5 वर्षों में 18922.96 हेक्टयर वन भूमि निजी कंपनीयों को खनन के लिए दि, उसमें से 16490 हेक्टयर वन भूति सिर्फ मध्यप्रदेश, राजस्थान, उडीसा, झारखंड और छत्तीसगढ जैसे आदिवासी बहुल राज्यों की है। केंद्र सरकार पूरे देश की वन भूमि कॉर्पोरेट को दे रही है। इसलिए देशभर के लाखों जनजातियों के सामाजिक संगठनों में आक्रोश होने से उन्हें आंदोलन करना पड रहा है और हम संगठनों ने अपनी बुनियादी और जायज मांगों को एकत्रित कर आपका ध्यान आकर्षित करने के लिए यह कदम उठाया है। हमारी निम्नलिखित मांगे है कृपया आप संविधान के दायरे में रहकर हमारी मांगो पर विचार कर उचित कार्यवाही करें।
01) विकास के नाम पर विस्थापन
अ) बडे-बडे बाँध बनाकर आदिवासीयों को बडे पैमाने पर 5 वी एवं 6 वी अनुसूची क्षेत्रों से विस्थापित करके उन्हें गैर अनसूचित क्षेत्रों में बसाया जा रहा है, जिससे 5 वी एवं 6 वी अनुसूची समाप्त होने का खतरा निर्माण हो गया है, इसके विरोध में।
ब) आदिवासी क्षेत्रों में आदिवासीयों की जमीन कं अंदर छूपी बहुमूलय से बहुमूल्य धातूओं का उत्खनन करने के लिए जमीनों का आवंटन पूंजीपतियों को करके 5 वी एवं 6 वी अनुसूची क्षेत्रों में वर्षों से निवासरत आदिवासीयों को विस्थापित करके अनुसूचित क्षेत्रों को समाप्त करने की साजिश के विरोध में। स) नेशनल कॉरिडोर एवं भारत माला प्रोजेक्ट के निर्माण के बहाने 5 वी एवं 6 वी अनुसूची क्षेत्रों से आदिवासीयों को बेदखल करने के विरोध में
द) औद्योगिकरण एवं उससे होने वाले शहरीकरण के माध्यम से 5 वी एवं 6 वी अनुसूची क्षेत्रों के आदिवासीयों की जमीने छिनकर उन्हें विस्थापित करने के विरोध में। 02) पर्यावरण के नाम पर वर्षों से जंगलो के अंदर एवं जंगलों के आसपास निवास कर रहे आदिवासीयों को बडे पैमाने पर किये जा रहे विस्थापन के विरोध में। 03) वन्य प्राणियों के संरक्षण के बहाने नेशनल पार्क एवं अभ्यारण बनाकर वर्षों से जंगलों के अंदर एवं जंगलों के आसपास निवास कर रहे आदिवासीयों को बडे पैमाने पर विस्थापित कर उनका जल, जंगल, मकान और जमीन का मालिकाना हक एवं अधिकार,वनों पर आधारित आजीविका एवं रोजगार छिनकर उन्हें पलायन करने के लिए मजबूर करने को उनका विरोध संयुक्त रूप में किया जा रहा है इस दौरान भगवानदास गोंड ,राजबली गोंड, रामचंद्र गोंड, अर्जुन गोंड, हीरावती गोंड, मानती देवी गोंड, कालिका देवी गोंड, अनिल गोंड, अरविंद गोंड, अनिलेश गोंड, अजय गोंड, अमर नाथ, रामखेलावन, शिवमूरत, अमीरशाह, रामनाथ, राजाराम, रामकिशन, रामसुभाग, ललन अगरिया, राम प्रसाद चेरो, लक्ष्मी पटेल, विमला देवी, गुड़िया अमर सिंह गोंड,संत कुमार गोंड, भगवंती, रामकिशन, सोमारू, महाजन शामिल रहे।