मध्य प्रदेश के इंदौर नगर निगम कर्मचारी की बल्ले से कथित तौर पर पिटाई के मामले आकाश विजयवर्गीय को आरोपमुक्त कर दिया गया है। इस मामले में अभियोजन पक्ष को सोमवार को तगड़ा झटका लगा, जब भारतीय जनता पार्टी (ऱझ) के पूर्व विधायक आकाश विजयवर्गीय समेत 10 लोगों को स्पेशल कोर्ट ने आरोपों से बरी कर दिया। विधायकों और सांसदों से जुड़े मुकदमे सुनने वाली अदालत के पीठासीन अधिकारी देव कुमार ने विजयवर्गीय और नौ अन्य लोगों को आरोपों से मुक्त किया।
इस मामले में बचाव पक्ष के वकील उदयप्रताप सिंह कुशवाह ने संवाददाताओं से कहा कि अभियोजन पक्ष इस मामले में अदालत में आरोप साबित नहीं कर सका। इस कारण अदालत ने विजयवर्गीय और नौ अन्य लोगों को बरी कर दिया, जबकि मामले के एक अन्य आरोपी की हत्या हो चुकी है। उन्होंने कहा कि इस घटना के कथित वीडियो की प्रामाणिकता विशेष न्यायालय में साबित नहीं हो सकी और नगर निगम के शिकायतकर्ता अधिकारी धीरेंद्र सिंह बायस और अभियोजन के 20 अन्य गवाहों ने अभियोजन पक्ष की कहानी का अदालत में स्पष्ट रूप से समर्थन नहीं किया।
बायस ने अदालत में जिरह के दौरान अपने बयान में कहा कि कथित घटना के दौरान उन्हें दाहिने पैर में घुटने के नीचे चोट आई थी। उन्होंने जिरह के दौरान इस बात को सही बताया कि जिस समय उन्हें यह चोट आई थी, वह तब मोबाइल फोन पर बात कर रहे थे और उनका पूरा ध्यान इस उपकरण पर होने के कारण वह देख नहीं सके थे कि किस व्यक्ति के कारण उन्हें यह चोट लगी।
क्या था मामला
आकाश विजयवर्गीय, राज्य के कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के बेटे हैं। अधिकारियों ने बताया कि तत्कालीन भाजपा विधायक आकाश विजयवर्गीय और 10 अन्य लोगों के खिलाफ 26 जून 2019 को नगर निगम के भवन निरीक्षक बायस को क्रिकेट के बल्ले से पीटने के आरोप में मामला दर्ज किया गया था।
यह एफआईआर भारतीय दंड संहिता की धारा 353 (लोक सेवक को भयभीत कर उसे उसके कर्तव्य के निर्वहन से रोकने के लिये उस पर हमला), 294 (गाली-गलौज), 323 (मारपीट), 506 (धमकाना), 147 (बलवा) और 148 (घातक हथियारों से लैस होकर बलवा) के तहत दर्ज की गई थी।
कथित घटना के वक्त आकाश विजयवर्गीय शहर के गंजी कम्पाउंड क्षेत्र के एक जर्जर मकान को ढहाने की मुहिम का विरोध कर रहे थे। राज्य में कमलनाथ की अगुवाई वाली पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में हुई इस घटना का कथित वीडियो सोशल मीडिया पर फैल गया था और इसके बाद तत्कालीन भाजपा विधायक को गिरफ्तार किया गया था। बाद में उन्हें इस मामले में जमानत मिल गई थी।