संवाददाता। जितेन्द्र कुमार।
सोनभद्र। रामनवमी सबसे महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है जो अपनी अनोखी परंपरा के कारण ऐतिहासिक है। यहां आदिवासियों के द्वारा मां काली को प्रसन्न करने के लिए विशेष पूजा किया जाता है जो बहुत ही अनोखा व अद्भुत है। चैत नवरात्र शुरू होते ही यह पूरे 9 दिन माता रानी का व्रत रखते हैं तथा इस कठोर व्रत के साथ विशेष पूजा अर्चना परिवारजनों के साथ मिलकर किया जाता है।अंतिम दिन मुंह में लोहे का सांग लगाएं अपने शरीर व गाल को छेदते हुए नगर के तमाम मंदिरों पर अपना मत्था टेकते हैं। और अपने परिवार गांव तथा देश की भलाई की मंगल कामना करते है।
काली धाम पर उमरा भक्तों का सैलाब
नवरात्र के अन्तिम दिन सुबह से ही काली धाम पर श्रद्धालुओ का ताता लगा हुआ था मानो पूरे घाम में आस्थवानो का शैलाब उमड़ पड़ा हो। रामनवमी में आस-पास के गाव के लोग आदिवासी परम्पराओ के साथ मां काली का पुजा अर्चना कर मुह में शांग व खप्पर लिये मां काली का जय उदघोश करते हुए पुरे मन्दिरो पर अपना मत्था टेका तथा मांता रानी की काली धाम पर विविध मन्त्रोचार के साथ विशेष पुजा किया। जहां भक्तों ने मां आदिशक्ति के अंश को समझ कर सॉन्ग के द्वारा शरीर को भेदने वाले लोगों के चरण स्पर्श कर उनसे अपने परिवार की भलाई और तरक्की की कामना कर आशीर्वाद लिया।
प्राचीनपरंपरा होने के कारण दूर दराज के भक्तगण भी लगाते है मां के यहां हाजिरी
रामनवमी के 9 दिन मां भद्रकाली की विशेष अनुष्ठान के साथ साधना पूजा होती है। इस कठोर पूजा में जगह-जगह धामों पर डाली लगाई जाती है। जहां आस पास सहित दूर दराज भक्तगण पहुंचकर अपने-अपने परिवार की तरक्की और खुशहाली के लिए माथा टकते हैं और माता के यहां हाजिरी लगते हैं। इस क्षेत्र में रामनवमी के समय आस्था और भक्ति का आदुतीय संगम देखने को मिलता है। इस समय लोग तंत्र साधना करके भी मां काली को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं।