संवाददाता – विकास कुमार हलचल।
-हिंदुओं- मुसलमानों ने लड़ा अंग्रेजो के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई।
-धार्मिक एकता का प्रतीक दुद्धि का जुगनू चौक।
-मोहर्रम के जुलूस की विदाई आज भी स्वर्गीय भोला साहू के दरवाजे से होती है।
सोनभद्र। उत्तर प्रदेश के अंतिम छोर पर 4 राज्यों से घिरा हुआ सोनभद्र जनपद के दुद्धी शहर में आजादी के अमृत महोत्सव महोत्सव वर्ष में हिंदू- मुस्लिम एकता की अद्भुत मिसाल कायम है। आज भी यहां के लोग खुशियों का त्योहार ईद, बकरीद, होली, दीपावली एवं गमी का त्यौहार मोहर्रम बड़े ही सौहार्द, सादगी के साथ मनाते हैं। इतिहासकार दीपक कुमार केसरवानी के अनुसार-“जब देश अंग्रेजों का गुलाम था हम सभी भारतीय अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए कफन बांध कर घरों से बाहर निकल चुके थे उस समय हमारे देश में हिंदू- मुस्लिम एकता कायम थी, दोनों मजहबो के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों से जमकर मुकाबला किया और त्याग, बलिदान, तपस्या के बल पर स्वतंत्रता अर्जित किया। यही हाल हमारे जनपद सोनभद्र दुद्धी क्षेत्र का रहा है यहां पर महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए स्वाधीनता आंदोलन हिंदू-मुस्लिम धर्म के लोगों ने उत्साह पूर्वक अपना बलिदान दिया, जेल- जुर्माने की सजा भुगती, लेकिन उन्होंने अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके और परिणाम स्वरूप देश को आजाद कराया”। दुद्धी क्षेत्र के निवासी एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुकखन अली के वंशज स्वर्गीय रफीक खान साक्षात्कार के दौरान बताया था कि- दुद्धी का जिंदल चौक (जुगनू चौक) दुद्धी के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की कर्म स्थली थी, यहीं पर क्षेत्र के हिंदू- मुस्लिम सेनानी मिलजुल कर अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन की रणनीति तय करते थे।
इस चौक पर इस्लामिक वर्ष के प्रथम माह मोहर्रम के दसवें दिन दुद्धी के व्यापारी भोला साहू एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुकखन अली के बंशधर जिंदल अली खान द्वारा ताजिया स्थापित करने की परंपरा की शुरुआत की गई तब से प्रतिवर्ष इस चौक पर ताजिया बैठाया जाता है और इसकी रश्मे हिंदुओं- मुस्लिमों द्वारा पूरी की जाती है । आगे उन्होंने बताया कि एक बार किसी ने थाने में शिकायत कर दी थी कि जुगनू चौक पर मुहर्रम की भीड़ इकट्ठा कर जादू- टोना कराते हैं। मुझे थाने में बुला लिया गया मेरे पीछे पीछे स्वर्गीय भोला साहू भी पहुंचे जिनकी समाज में उनकी बहुत इज्जत थी। थाने में आए। सारे लोग खड़े हो गए। उन्होंने मुझसे पूछा
” तुम यहां कैसे बैठे हो, वहां चौक कौन देख रहा है?”
” दारोगा जी ने बुलवाया है।”
“दरोगा जी ने कहा-” वो चौक ताजियादारी की कुछ बात थी चाचा जी मैंने बुलवाया था।”
” कुछ नहीं,यह बच्चा क्या जानेगा चौक के बारे में? इसके बाप दादा के जमाने में देखते चौक पर कमाल। वहां कुछ गफलत नहीं है। वहां आस्था से लोग जाते हैं, मन्नतें करते हैं। आपकी जिम्मेदारी है वहां कोई व्यवधान न हो। स्वर्गीय भोला साहू के इस कथन पर दरोगा ने रफीक खान को दरोगा जी छोड़ दिया।
आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में इस बार विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी मोहर्रम के ताजिया की विदाई इस त्यौहार के संस्थापक स्वर्गीय भोला साव के दरवाजे से होगी। लेकिन स्थापना काल से वर्ष भर पहले मुहर्रम के ताजिया की ताजियादारी करने वाले रफीक खान की अनुपस्थिति मे।
ज्ञातव्य हो कि दिसंबर 2022 में रफीक खान की 112 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।
हिंदू- मुस्लिम एकता का त्यौहार मोहर्रम को बड़े ही शांति और सौहार्द के साथ स्वर्गीय भोला साहू, कैलाश वकील, पदमश्री स्वर्गीय हनीफ मोहम्मद शास्त्री, रफीक खान, इशहाक खान, रामदास ठठेरा, रजखड़, दुल्हन के कुछ हिंदू परिवारों द्वारा परंपरागत रूप से एक साथ मिलकर मनातेे है।
दुद्धी के निवासी एवं स्वतंत्रता संग्राम परिवार के इशहाक खान बताते हैं कि-“जिंदल अली दुद्धी के महान स्वतंत्रता सेनानी सुक्खन अली खान के छोटे भाई थे,जब अंग्रेज हुकूमत ने तहसील के सामने का इनका मकान ज़ब्त कर लिया था, तब सारी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले कर जिंदल अली ने अपने इसी ताजिया चौक से आंदोलन को अंजाम देते रहे। इसमें इनका भरपूर सहयोग किया इनकी धर्म पत्नी नन्हंकी जान इनको स्वतंत्रता आंदोलन की रणनीति बताने के लिए अंग्रेजी पुलिस ने कई बार मजबूर, प्रताड़ित किया लेकिन इस वीरांगना ने अपनी जुबान नहीं खोली और अंग्रेजों की प्रताड़ना झेलती रही ।
खजुरी रेलवे गेट के पास 110 वर्षीय श्री रामवृक्ष ने बताया कि-” वे बचपन से चौक पर प्रसाद फातिहा कराने जाते रहे हैं।
इस वर्ष भी मोहर्रम की ताजिया कर्बला समापन की ओर जाने से पहले भोला साहू के दरवाज़े परंपरा का पालन करते हुए जाएगी और वहां फातिया पढ़ने के बाद कर्बला प्रस्थान करेगी। इस मोहर्रम के जुलूस में ताजिया को कंधा देंगे हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल कायम करने वाले दुद्धी तहसील के नागरिक।