संवाददाता। विजय कुमार अग्रहरी।
सोनभद्र।भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण उत्तरी क्षेत्र लखनऊ द्वारा शनिवार को सोनभद्र के सलखन स्थित जीवाश्म उद्यान में भारत सरकार की महत्वपूर्ण कार्यक्रम स्वच्छता ही सेवा के अंतर्गत एक दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य आम जनमानस को सलखन जीवाश्म उद्यान के महत्व के संबंध में जानकारी देते हुए स्वच्छता के महत्व को बताना था। कार्यक्रम की शुरुआत में स्वच्छता शपथ अंशु पांडे द्वारा मौजूद सभी लोगों को दिलाई गई तथा उन्होंने अपने संबोधन में सलखन की इस भूविरासत के संरक्षण तथा स्वच्छता पर विशेष बल दिया। स्थानीय खनिजों अयस्कों एवं पोस्टर की प्रदर्शनी का अनावरण किया, जिसके विषय में अधिकारियों द्वारा जनमानस को जानकारी दी गई। कार्यक्रम के दौरान गणमान्य अतिथियां द्वारा पौधारोपण का कार्य किया गया तथा सलखन जीवाश्म उद्यान के आसपास की सफाई का कार्य किया गया और जनता को इस भूविरासत के संरक्षण के महत्व को समझ वही भूवैज्ञानिक अवंतिका त्रिपाठी ने बताया कि हम लोग सोनभद्र जिले के सलखन जीवाश्म उद्यान में इकट्ठे हुए हैं। सलखन जीवाश्म उद्यान उत्तर प्रदेश का एकमात्र भूमि विरासत उद्यान है। यहां पर 1.5 अरब वर्ष पुराने जीवाश्म मौजूद है। यह एक प्राकृतिक विरासत है जो धरती पर जीवन की उत्पत्ति को दिखाते हैं धरती के जीवन की उत्पत्ति समुद्र के तट पर हुई थी। ऐसे जीवाश्म विन्ध्यनगर पर्वत श्रृंखला में पाई जाती है। चूना पत्थर चट्टानों में स्ट्रोमैटोलाइट प्रकार के जीवाश्म पाए जाते हैं। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यही धरती पर जीवन की उत्पत्ति को दिखाते हैं। अवंतिका त्रिपाठी ने बताया धरती की उत्पत्ति के समय वातावरण में ऑक्सीजन नहीं थी। जिस पर आज हम सब जिंदा है। जीवाश्म ही कार्बन डाइऑक्साइड को कंज्यूम करके ऑक्सीजन को पर्यावरण में छोड़ा था। जिससे आने वाले जीवन धरती पर पॉसिबल हो पाए। इसलिए यह एक महत्वपूर्ण जीवाश्म है। धरती के जीवन की उत्पत्ति को दिखा रहे हैं। पिछले कई वर्षों से भारतीय भूवैज्ञानि सर्वेक्षण कर भू विरासत के संरक्षण के लिए आमजनमानस को जानकारी देकर जागरूक करने का काम कर रहा है। जिससे आम जनमानस कभी भी ऐसी चीजों को नुकसान न पहुंच पाए। सलखन जीवाश्म उद्यान उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद में स्थित है तथा उत्तर प्रदेश का एकमात्र भू विरासत स्थल है सलखन जीवाश्म उद्यान विंध्य तलहटी महासमूह की चूना पत्थर चट्टानों में स्ट्रोमैटोलाइट प्रकार के जीवाश्म पाए जाते हैं। जो कि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति एवम विकास क्रम को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन जीवाश्मों की खोज 1933 में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के वैज्ञानिकों द्वारा की गई। यह जीवाश्म लगभग एक 1.5 अरब वर्ष पूर्व समुद्र के तल पर पाए जाने वाले एक कोशिकीय शैवाल हैं।जिनका वातावरण में आक्सीजन उपलब्ध करवाने का योगदान से जाना जाता है।