संवाददाता। राकेश शरण मिश्र।
० ग्रामवासी दादा का संपूर्ण जीवन अनुकरणीय एवं बंदनीय।
राकेश शरण मिश्र, वरिष्ठ पत्रकार एवं सामाजिक व राजनीतिक विश्लेषक।
सोनभद्र। सोन नदी के सुरम्य तट पर कल- कल करते सोन के पानी से गुंजायमान भारत मां के सच्चे सपूत, महान देश भक्त, स्वतंत्रता की लड़ाई में अपने आपको पूर्ण रूप से समर्पित करने वाले अविभाजित जनपद मिर्जापुर के दुद्धी विधान सभा क्षेत्र के प्रथम विधायक रहे पंडित ब्रज भूषण मिश्र उर्फ ग्रामवासी जी की मातृभूमि के लिए उनके द्वारा किए गए त्याग,तप और समर्पण की संघर्ष युक्त गाथा की स्मृतियों को संजोने और उसे जनपद सोनभद्र के लोगो के लिए प्रेरणा श्रोत के रूप में ग्रामवासी दादा की सुयोग सुपुत्री शुभाशा मिश्रा द्वारा स्थापित ग्रामवासी सेवा आश्रम किसी तीर्थस्थान से कम नही लगता। इसी तीर्थ स्थान में आज 27 अगस्त को ग्रामवासी जी की 125 वी जयंती पर उनकी पुत्री जी द्वारा भव्य आयोजन करके उनकी स्मृतियों को संजोने साझा करने का काम किया जाएगा। ग्रामवासी आश्रम के कण कण ग्रामवासी दादा के संघर्षमय जीवन की कहानी बयां करते हैं। बस आपको इसे देशभक्ति की भावना से महसूस करने की आवश्यकता है। जिस प्रकार ग्रामवासी दादा ने अपने दैहिक सुख और स्वार्थ को परे रख कर अपने देश के लिए, अपने वतन के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन न्योछावर कर दिया, ठीक उसी प्रकार उनकी सुपुत्री जानी मानी संगितज्ञ वायलिन वादक जिन्होंने अपने वायलिन की मधुर झंकार से ना केवल अपने देश में बल्कि विदेशों में भी बेमिसाल ख्याति अर्जित किया, अपने पिता ग्रामवासी दादा के प्रेरणादाई जीवन को, उनके संदेशों को, उनके जीवन सिद्धांतो को और उनके जीवन दर्शन के पांच बेमिसाल सूत्रों को जन जन तक पहुंचाने के लिए अपना व्यक्तिगत जीवन पूर्ण रूप से दांव पर लगाकर अपने आपको अपने पिता के लिए समर्पित कर दिया। जो एक आज के युग में बेमिसाल उदाहरण है ।काश ऐसी पुत्री हर पिता को मिल जाए तो उस पिता का जीवन जितना रहने पर लोकप्रिय नहीं रहता उनके ना रहने पर हो जाता है। आज भदोही जनपद जहां दादाजी का बचपन युवा हुआ, वहां से लेकर अविभाजित मिर्जापुर अब जनपद सोनभद्र जहां उन्होंने अपनी अधेड़ावस्था और अपने जीवन का अंतिम समय बिताया, जन जन के जुबान पर ग्रामवासी दादा के अनुकरणीय जीवन की जीवन गाथा विद्यमान है। दादा की पुत्री सुश्री मिश्रा ने अभी दो साल पूर्व अपने पिता एवं माताजी की बहुत सुंदर बोलती प्रतिमा शानदार आयोजन करके ग्रामवासी सेवा आश्रम के बीचों बीच मैदान में बहुत ही सुसज्जित तरीके से जनपद के गण मान्य लोगो की उपस्थिति में स्थापित की जिससे ग्रामवासी दादा और कृपाली जी चिरकाल तक जनपद सोनभद्र के लोगो के दिलो में विराजमान रहेंगे। शुभाशा जी द्वारा प्रति वर्ष अपने पिता ग्रामवासी दादा की जयंती और पुण्य तिथि पर राष्ट्रीय भावना से ओत प्रोत आयोजन करके ना केवल दादाजी की स्मृतियों को साझा करती हैं बल्कि जनपद के गण मान्य लोगो की उपस्थिति में उनके के जीवन मूल्यों और जीवन आदर्शो को आत्मसात करने के लिए लोगो से अपील भी करती हैं। वास्तव में ग्रामवासी दादा के पांच सूत्र जो उन्होने समाज को देने का भागीरथी प्रयास किया है अगर लोग अपने जीवन में अपना ले तो उनका जीवन धन्य होने से कोई नही रोक सकता। ग्रामवासी दादा के पांच सूत्र पहला गो वध बंदी, दूसरा मदिरा बंदी, तीसरा अश्लील प्रदर्शन बंदी, चौथा हिंदी भाषा को प्राथमिकता और पांचवा लाटरी जुआ बंदी। अगर ये पांचों सूत्र आज की युवा पीढ़ी अपने जीवन में अपना ले तो आज जो समस्या समाज मे सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ी है वो ना खड़ी होती। आज देश की ना केवल युवा पीढ़ी बल्कि समाज का सर्वाधिक शिक्षित व्यक्ति वो चाहे किसी क्षेत्र का हो, किसी वर्ग का हो या किसी जाति का हो वो किसी ना किसी नशे की गिरफ्त में जकड़ा हुआ है। आज पूरे देश में सरकार द्वारा शराब और भांग की दुकानों का खुले रूप से बकायदे टेंडर जारी किया जाता है और करोड़ों का राजस्व देश के लोगो का घर परिवार बर्बाद कर वसूला जाता है जो बहुत ही शर्मनाक है। आज गो वध में और गो मांस की बिक्री और आयात में अपना देश विशेष स्थान रखता है ऐसा लोगो का कहना है। आज भी देश के कई राज्यों में बिना किसी डर भय के गो मांस की बिक्री की जाती है जिस पर पूर्ण से पाबंदी होना चाहिए अश्लील प्रदर्शन आज के समाज का स्टेट्स सिंबल बन चुका है आधुनिकता और शिक्षित होने का सबसे बड़ा प्रमाण आज अश्लील प्रदर्शन बन चुका हैं। भारतीय सिनेमा से लेकर सोशल मीडिया तक, फेस बुक वाटसअप पर हर जगह अश्लीलता छाई हुई है और सरकार खामोश है। हिंदी के नाम पर हिंदी दिवस पर बड़े बड़े मंचो से बड़ी बड़ी बाते तो की जाती है पर हकीकत के धरातल पर हिंदी के उत्थान का ईमानदारी का प्रयास दूर दूर तक नजर नहीं आता। जिसे देखो वही अपने बच्चे को मैकाले की शिक्षा पद्धति वाले अंग्रेजी स्कूलों में प्रवेश दिलवाने के लिए परेशान रहता है। आज देश की आजादी के 75 वर्ष बाद भी सभी सरकारी कार्यालयों में अंग्रेजी में ही कार्य किया जाता है और हिंदी में कार्य करने वाला अपमानित किया जाता है। दादाजी का अंतिम सूत्र लाटरी जुआ बंदी अगर इस समाज द्वारा अपना लिया गया होता तो आज लाखो परिवार टूटने से, समाप्त होने से बच जाते। पर ऐसा ना हो सका बल्कि राज्य सरकारों द्वारा स्वयं लाटरी जुआ कानूनी रूप से खिलवाया जाने लगा जिसके कारण लाखो परिवार भुखमरी के कगार पर खड़े हों गए। ग्रामवासी दादा का जीवन दर्शन समाज के लिए अत्यंत अनुकरणीय था, है और रहेगा। आज सरकार को चाहिए कि ग्रामवासी दादा के जीवन मूल्यों और उनके जीवन दर्शन से संबंधित समस्त सामग्रियों अर्थात उनके लेख, उनकी पुस्तके और उनके द्वारा सन 1923 से प्रकाशित ग्रामवासी पत्रिका के संपादकीय एवम संदेशों को एकत्रित कर उसका अध्ययन करे और ग्रामवासी आश्रम चोपन को जनपद के अन्य पर्यटक स्थलों की तरह विकसित कर ग्रामवासी दादा के जीवन चरित्र और समाज के लिए उनके जीवन संघर्षों की गाथा को संजोते हुए आम जन के अवलोकनार्थ ग्रामवासी संग्रहालय बनाने का कार्य करे जिससे जनपद के लोगो को ज्ञात हो संके कि इस जनपद में भी एक गांधी था जिसने अपना सम्पूर्ण जीवन सादगी,सरलता, सहजता और सहयोग की भावना से कार्य करते हुए समाज के शोषित, पीड़ित और दबे कुचले लोगो के लिए समर्पित करके अमर हो गया और उसका नाम था पंडित ब्रज भूषण मिश्र उर्फ ग्रामवासी दादा। ग्रामवासी दादा भारतीय संस्कृति और भारतीय परंपरा के सच्चे पोषक थे। साथ ही जहां उनका राजनीतिक और सामाजिक जीवन देश और समाज के लिए समर्पित था वहीं उनका साहित्यिक और पत्रकारिता जीवन भी किसी बड़े साहित्यकार पत्रकार से कम नही था। अपनी तीव्र, निष्पक्ष और निर्भीक लेखन क्षमता से उन्होंने आजादी की लड़ाई में गोरी सरकार के नाक में दम करके उनका जीना मुहाल कर दिया था। सन 1923 में जब आज की तरह अखबार निकालने के संसाधन मौजूद नही थे उस समय अपनें अकेले के बल पर वो भी अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध बगावत का बिगुल बजाकर ग्रामवासी अखबार निकालना और खुद सायकिल से लोगो को बांटना कोई आसान काम नही था। पत्रकारिता की इससे बड़ी मिसाल आज के दौर के पत्रकारों के लिए और क्या हो सकती है। आज के पेशेवर पत्रकारों को ग्रामवासी दादा की पत्रकारिता पर रिसर्च करना चाहिए कि आखिर कैसे एक आदमी आजादी के पहले के अत्यंत कठिन और मुश्किल दौर में पत्रकारिता के क्षेत्र में इतना बड़ी मिसाल पेश कर सकता है। बहरहाल ग्रामवासी दादा के जीवन चरित के बारे मे जितना लिखा जाए वो कम ही है। मैं ऐसे महान योगी, पथ प्रदर्शक, महा मानव, युगदृष्टा पंडित महेश दत्त मिश्र के पुत्र गोपीगंज में 27 अगस्त सन 1899 में जन्मे सन 1921 से लेकर देश के आजाद होने तक आजादी की लड़ाई में कई बार जेल की यात्रा कर चुके और आजादी के बाद सन 1952 में अविभाजित मिर्जापुर अब जनपद सोनभद्र के दुद्धी विधान सभा से प्रथम विधायक चुने जाने वाले एवं जीवन पर्यंत अपना सम्पूर्ण जीवन देश और समाज के लिए समर्पित कर देने वाले पंडित ब्रज भूषण मिश्र उर्फ ग्रामवासी दादा जी की आज 125 वी जयंती पर उनके श्री चरणों में बारंबार नमन वंदन करते हुए अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
*ग्रामवासी दादा अमर रहे।*