संवाददाता। विजय कुमार अग्रहरी।
असमानता के गढ्ढों को ढकने को आस्था का उपयोग करने का प्रयास मात्र है यह बजट।
सोनभद्र- मंगलवार को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने सोमवार को विधान सभा में योगी सरकार द्वारा प्रस्तावित उत्तर प्रदेश के आम बजट को लोकसभा चुनावों में मतदाताओं को लुभाने के लिये तैयार किया गया एक पर्चा करार दिया है। यह बजट किसानों कामगारों, युवाओं तथा समाज के अन्य विपन्न तबकों की दयनीय दशा को ढकने का आडंबर पुराण है, और भाजपा द्वारा धर्म की आड़ में लोगों को ठगने के लिये खेले जा रहे खेल को आगे और तेजी से बढ़ाने का ब्लू-प्रिंट है। अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कराते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के जिला सचिव कामरेड आर के शर्मा ने कहा कि इस बजट को हर बार की तरह अब तक के सबसे बड़े आकार वाला बताया गया है, पर इसके आकार का आंकड़ा इसलिए बड़ा दिख रहा है कि भाजपा के साढ़े नौ वर्षों के केंद्रीय शासन में रुपए का आकार सिकुड़ कर लगभग 10 पैसे के बराबर रह गया है। अनेक झूठे वादे और बड़बोलेपन से लबालब आंकड़े भी यह नहीं छिपा सके हैं जिससे यह बजट महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी, स्वास्थ्य एवं अशिक्षा जैसी भयावह समस्याओं के निराकरण में एकदम बेदम है। सच तो यह है कि बजट गरीबी को और भी बढ़ाने वाला है तथा अमीरों को और भी मालामाल करेगा। विकास, और सामाजिक कल्याण की अनेक योजनाएं भयावह भ्रष्टाचार में डूबी हैं। इसका ताजातरीन उदाहरण यह है कि उत्तर प्रदेश के तमाम लोग ठंड से सिकुड़ कर मरहूम हो गए और सरकार ने जनवरी मध्य तक अलाव जलाने पर रुपये 53 करोड़ का खर्च दिखा दिये । सरकार ने बेरोजगारी,भ्रष्टाचार,महिला उत्पीड़न एवं कमजोर वर्ग की सुरक्षा का खाका भी प्रस्तुत नहीं किया, जबकि जन मानस में भय फैलाने के लिए की जा रही बुलडोजरी कार्यवाहियों पर बेशुमार धन खर्च किया जा रहा है। वोट और सत्ता के लिये धर्म की आड़ में खेले जा रहे खेल को और तेजी से आगे बढाने के लिये तमाम राशि आवंटित की हैं जबकि आधुनिक भारत का उन्नयन रोजगार के मंदिरों (उद्योग,कल कारखानों और आधारभूत ढांचे) के निर्माण की उपेक्षा की गई है। जनहित की अनदेखी कर केंद्र सरकार की तरह यूपी सरकार भी अपने खास लोगों को लाभकारी और धार्मिक एजेंडे को पूरा करने के लिए इस बजट को महत्वपूर्ण होने का ढिंढोरा पीट रही है जबकि यह महंगाई, बेरोजगारी से जूझ रही जनता के लिए छलावा ही है । आजादी के बाद यह पहला बजट है जो गरीब और आम लोगों को नहीं, अपितु राम को समर्पित किया गया है। वित्तमंत्री द्वारा बजट पुस्तिका को घरेलू पूजागृह में इष्ट देवताओं के समक्ष पहले प्रस्तुत कर यह साबित कर दिया है कि जनता को आगे भी “राम भरोसे” ही जीवन जीना है। यह राजनैतिक उद्देश्यों के लिये आस्था के लालच पूर्ण दोहन का भयंकर उदाहरण है। बड़ा होने का ढिंढोरा पीटे जाने वाले सात लाख छत्तीस हजार करोड़ रुपये के इस प्रस्तावित बजट है।