विंध्य ज्योति गाजीपुर। शिव शंकर पाण्डेय
गाजीपुर जिले के चीतनाथ घाट स्थित आर्य समाज मंदिर में सिलीगुड़ी से आयीं विदुषी वंदना आर्य जी ने आर्य समाज के सिद्धांतों, भविष्य और धर्म पर विशद चर्चा की. उन्होंने कहा कि, आर्य समाज एक पंथ नहीं बल्कि श्रेष्ठ विचारों के अर्जन, वर्धन, संरक्षण और प्रचार-प्रचार के लिए महर्षि दयानन्द द्वारा शुरू किया गया एक आन्दोलन है जिसमें केवल सत्य प्रधान है. यदि आपके पास सत्य के पक्ष में प्रमाण है तो आप आर्य हैं. हिन्दू, मुसलमान और अन्य धर्म के नाम पर प्रचलित विचारधाराएँ केवल पंथ हैं और उनसे आर्य समाज का कोई मनभेद नहीं है. प्रत्येक आर्य यह मानता है कि मिलावट के साथ सत्य को स्वीकार करने वाले लोग गलत नहीं है. वे केवल राख से दबी हुई अग्नि के समान अज्ञानता से घिरे हुए हैं. विचार-विमर्श और मंथन के कारण उनके अंदर ज्ञान सत्योंमुख हो जाएगा। उन्होंने कहा कि धर्म की बात वेद करता है, और इसीलिये वेद को परमात्मा की वाणी कहते हैं. वेद भद्र सुनने, कहने और देखने को कहते हैं लेकिन संसार में सब कुछ दिखता है और सुनाई देता है, भले के साथ बुरा भी. इसलिए मनुष्य को अपने विवेक के साथ भद्र को ग्रहण करना चाहिए. यही ग्रहणशीलता का सिद्धांत है. उन्होंने कहा कि एक आर्य वाह्य आडम्बरों से धार्मिकता की पहचान नहीं करता है. वह धैर्य, क्षमाशीलता, मन को विकारों से दूर रखने, चोरी न करना, आंतरिक और वाह्य पवित्रता, इन्द्रियों पर नियंत्रण, बुद्धि के विकास, विद्या, सत्य, क्रोध न करने वाले दस सद्गुणों को धारण करने वाले मनुष्य को ही धार्मिक मानता है. उन्होंने अपने बच्चों को ऐसे विद्यालयों में भेजने की बात कही जहां आधुनिक शिक्षा के साथ भारतीय संस्कार मिलें. उन्होंने डी ए वी इंटर कॉलेज में यज्ञ संस्कृति और सत्यार्थ प्रकाश के अध्यापन पर बल दिया. माधव कृष्ण ने धन्यवाद प्रस्ताव रखते हुए कहा कि, स्वाध्याय के बिना समाज दिग्भ्रमित होता है. इसलिए उन विदुषियों को समाज में ऐसी सार्वजनिक सभाओं में आमंत्रित करना चाहिए जिससे लोगों को सत्य ज्ञान हो. वेदों के नाम पर अनर्गल अर्थों से भटकाने वाले स्वयंभू तामसिक मूर्खों से समाज की रक्षा करने के लिए ऐसे आयोजन और मंथन बहुत सार्थक है. सभा में आदित्य प्रकाश, संतोष वर्मा, प्रोफेसर शिखा तिवारी, डॉ संतोष तिवारी इत्यादि उपस्थित रहे।