जरूरी सुविधाओं से महरूम विद्यार्थी – शिक्षक हैरान, विद्यार्थी परेशान।
★ निजी करण का अनूठा प्रयोग- वेतन सरकारी मगर सेवा प्राइवेट में करिए।
विंध्यज्योति/ विकास कुमार हलचल।
ओबरा: अव्यवस्था और मनमानी की छत्रछाया में पल रहे डीएवी ओबरा विद्युत इंटरमीडिएट विद्यालय ओबरा सोनभद्र का विवादों से पीछा नहीं छूट रहा है। प्रतिदिन शिक्षकों एवं विद्यार्थियों का शोषण होता है लेकिन क्या मजाल की कोई खुलकर कुछ बोल दे। ताजा घटनाक्रम में सूत्रों से पता चला है कि कुछ कक्षाओं के विद्यार्थी भीषण गर्मी में 6 दिनों तक बिना लाइट और पंखे के रहे और बदबू और अंधेरे में पढ़ाई करने को मजबूर हैं। टेंडर की शर्तों में स्पष्ट लिखा है कि 2 वर्ष तक पुरानी व्यवस्था एवं बोर्ड के अनुसार विद्यालय चलेगा लेकिन डीएवी प्रबंधन द्वारा विद्यार्थियों को प्रतिदिन डीएवी का नया यूनिफार्म सिलवाने का दबाव बनाया जा रहा है। विद्यार्थी जब अपनी गरीबी और मजबूरी का हवाला देते हैं तो कहा जाता है कि जो दोनों टाइम खाना खाता है, वह गरीब कैसे हो सकता है? और जिसके पास दो हाथ, दो आँख है वह तो बिल्कुल गरीब नहीं है । विद्यार्थी जब साफ पानी के लिए आरओ को ठीक कराने का अनुरोध करते हैं तो स्पष्ट रूप से कहा जाता है कि पहले भी तो यह खराब था तब कैसे काम चलाते थे? उसी से काम चलाओ ।विद्यार्थी गंदा पानी पीने को मजबूर है। डीएवी प्रबंधन ने निगम पर यह भी आरोप लगाया है कि वर्षों से कमरों और नालियों की साफ -सफाई और अनुरक्षण तो हुआ ही नहीं था ,मतलब निगम पर भी प्रश्न चिन्ह लगा रहा है कि दशकों से अनुरक्षण का पैसा आखिर गया कहाँ 3 शिक्षकों की सेवानिवृत्ति एवं 19 संविदा शिक्षकों को निकाल देने के बाद पूरी शिक्षा व्यवस्था चरमरा गई है। प्राइमरी के शिक्षकों को डरा- धमकाकर प्रवक्ता का कार्य तो ले लिया जा रहा है लेकिन वह पूरी गुणवत्ता से कैसे पढ़ा पाएंगे ? यह यक्ष प्रश्न है। ऐसे में हाईस्कूल एवं इंटर के विद्यार्थियों का कैरियर तो दांव पर ही लग गया है क्योंकि वे विद्यालय की व्यवस्था का विरोध करते हैं तो प्रयोगात्मक परीक्षा खराब होने के साथ-साथ अनुशासनहीन बताकर चरित्र खराब कर देने की धमकी भी मिलने लगी है। कुल मिलाकर बिजली प्रबंधन को भी यह उम्मीद नहीं थी कि उसके इस निर्णय से हजारों विद्यार्थियों की जिंदगी बर्बाद करने का कलंक उन्ही के माथे पर लग जाएगा । इधर डीएवी प्रबंधन अपनी कमियों को छुपाने के लिए हरसंभव प्रयास में लगा है लेकिन असफल रहा है। एक पूर्व विद्यार्थी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जो टीसी पहले नि:शुल्क मिलती थी,अब वह ₹- 233 में मिल रही है क्योंकि डीएवी पहले कक्षा 9 में नाम लिखेगा उसके बाद ही टीसी कटेगी। उत्तीर्ण विद्यार्थियों को पहले यही टीसी फ्री में मिलती थी। 12 पास विद्यार्थियों से प्रति टीसी ₹- 50 लिया जा रहा है जबकि 2 वर्ष तक पुरानी व्यवस्था के अनुसार सब कुछ निशुल्क होना चाहिए था। विद्यार्थियों को अगली कक्षा में प्रवेश लेने का दबाव है इसलिए कोई कहीं भी कोई शिकायत नहीं कर रहा है। विभिन्न समाचार पत्रों में प्रधानाचार्य एवं मेधावी विद्यार्थियों की सूची पट्टिका को कूड़े के साथ जमीन पर रखने का समाचार प्रकाशित होते ही अब दोनों को ही गायब कर दिया गया। लेकिन श्रेष्ठ प्रदर्शन के एवज में मिलने वाले शील्ड आज भी एक कोने में अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहे हैं। यह उन पुरातन विद्यार्थियों एवं शिक्षकों का घोर अपमान ही है जिन्होंने कड़ी मेहनत से यह शील्ड जीता था। कारण जो भी हो विद्यालय के अंदर बहुत बड़ी गड़बड़ी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता ।
टेंडर की शर्तों के अनुसार बिजली का बिल डीएवी प्रबंधन से वाणिज्यिक दर पर वसूलना चाहिए था। लेकिन निगम की कृपा से अभी तक मीटर ही नहीं लगा। निगम के पंखों को 30 जून तक वापस लेना था लेकिन अभी तक सारे पंखे डीएवी में ही लगे हैं। डीएवी पब्लिक की प्रधानाचार्या को वीआईपी गेस्ट हाउस में विशेष सुविधा में रखा जा रहा है। ऐसा लगता है कि डीएवी को पोषित करने में अप्रत्यक्ष सहयोग देने हेतु निगम के अधिकारी भी बाध्य हैं। कुल मिलाकर जीआईसी बनने की राह पर अग्रसर एक लोकप्रिय विद्यालय को जिस तरह से षडयंत्र करके पहले तो सरकारी अनुदान लेने से मना किया गया फिर विद्यालय को निगम पर आर्थिक बोझ दिखाया गया इसके बाद डीएवी को ही पूरा विद्यालय दे दिया गया, इससे टेंडर प्रक्रिया पर प्रश्न चिन्ह लग गया है।अब डीएवी द्वारा शिक्षकों का शोषण एवं विद्यार्थियों को प्रकाश एवं पानी जैसी आधारभूत सुविधाओं से भी वंचित करके और प्राइमरी के शिक्षकों से प्रवक्ता का कार्य लेकर विद्यार्थियों का भविष्य बर्बाद किया जा रहा है। देखना यह होगा कि जीरो टॉलरेंस की नीति वाली योगी सरकार के मुखिया की नजर इस विद्यालय पर कब पड़ेगी और गरीब बनवासी विद्यार्थियों का एकमात्र सहारा उनका विद्यालय उन्हें वापस कब मिलेगा।