- हजारों बच्चों को शिक्षा से वंचित करने का अनूठा खेल : शिक्षा विभाग बेखबर
विंध्य ज्योति, विकास कुमार हलचल।
सोनभद्रओबरा : अव्यवस्थाओं के बीच चल रही शिक्षा व्यवस्था को देखना हो तो डीएवी विद्युत ओबरा इंटर विद्यालय को देखना चाहिए। नौनिहालों के जीवन को बर्बाद करने का ऐसा खेल शायद ही देखने को मिलेगा। ओबरा इंटर कॉलेज को बेचने से पहले शिक्षकों की कमी, साफ पानी, साफ कमरो की कमी एवं निगम की गरीब हालत को दिखाकर जिस तरह से निगम ने इसे बेचा और अच्छी शिक्षा का सपना दिखा कर डीएवी ने इस विद्यालय को खरीदा आज सब के सब बेमानी हो गए हैं। प्राप्त सूचना के अनुसार प्रतिदिन कक्षा अध्यापक बदले जा रहे हैं। विद्यालय का नाम तो 4 बार बदला गया । विषय पढ़ाने वाले शिक्षक कब बदल जाते हैं, अनुमान करना भी कठिन है। प्रधानाचार्य हर महीने बदल रहे हैं। प्राइमरी के शिक्षकों से प्रवक्ता का काम लिया जा रहा है।अब जिस विषय को शिक्षक खुद नहीं पढ़ा है… उसको छात्रों को पढ़ाता कैसे होगा ? आप अनुमान लगा सकते हैं । विद्यालय में केवल तीन विषय के प्रवक्ता हैं। इसलिए नए शिक्षकों की भर्ती विषय के अनुसार करना चाहिए था, मगर अभी तक भर्ती किया नही। प्रैक्टिकल होता नहीं । साइंस क्लासेज के लिए शिक्षक भी नहीं , लेकिन भारी भरकम फीस लेकर ओबरा इंटर कॉलेज से अच्छी शिक्षा देने का दावा करने वाला डीएवी यह भूल गया कि प्राइमरी के शिक्षकों से प्रवक्ता का काम लेने पर बच्चों की जिंदगी ही बर्बाद हो जाएगी । जब पुराने शिक्षकों से ही डीएवी को चलाना था तो पुराने ओबरा इंटर कॉलेज को चलाने में क्या परेशानी थी ?? क्योंकि सब कुछ तो पुराना ही है। फिर चमत्कार का दावा क्यों? इस विद्यालय में अपने बच्चों का नाम लिखाने वाले कभी पूछते क्यों नहीं कि उनके नौनिहालों की जिंदगी बर्बाद क्यों किया जा रहा है ?… आश्चर्य तो तब होता है, जब जीरो टॉलरेंस नीति वाली सरकार के नुमाइंदे शिकायत करने पर भी ध्यान नहीं दे रहे हैं। न तो बीएसए और न ही डीआईओएस को खबर है कि डीएवी के अंदरखाने में क्या चल रहा है , या फिर किसी दबाव में आंखें बंद करने को मजबूर हैं । डीएवी पब्लिक विद्यालय की प्रधानाचार्य के दुर्व्यवहार एवं आतंक से पीड़ित विद्यार्थियों एवं शिक्षकों की दुर्दशा से मीडिया के साथ-साथ निगम के अधिकारी भी खूब परिचित हैं लेकिन क्या मजाल कि कोई कुछ बोल या लिख दें। ऐसा लगता है कि सब के सब को सांप सूंघ गया है। वरना शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारी केवल एक बार विद्यालय की मान्यता से लेकर पढ़ाई-लिखाई एवं व्यवस्था को चेक कर लें, तो पता चल जाएगा कि डीएवी की स्थिति पुराने इंटर कॉलेज से भी गई गुजरी है और वह बिना कुछ लगाए पुराने साधनों से ही जमकर कमाई करना चाहती हैं । जो भी हो इन सब के बीच बेचारे विद्यार्थी पिस जा रहे हैं और निष्पक्ष मन से उनका खोज-खबर लेने वाला कोई भी नहीं है। न तो समाजसेवी, न ही नेतागण, न तो जिम्मेदार अधिकारी और न ही निगम प्रबंधन।