विंध्य ज्योति /विकास कुमार हलचल।
सोनभद्र। ओबरा की शान एवं शिक्षा जगत में अपनी विशेष पहचान बनाने वाले ओबरा इंटर कॉलेज का अस्तित्व समाप्त होने के साथ इसके बेचने में मुख्य भूमिका निभाने वालों पर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो रहा है। आदिवासी और गरीब जनसंख्या की बहुलता वाले क्षेत्र में सस्ती और गुणात्मक शिक्षा देने का ऐसा उदाहरण कम ही मिलेगा ।यहां निगम प्रबंधन की उदारता प्रशंसनीय है। इसको समाप्त करने की पटकथा बहुत पहले ही लिखी जा चुकी थी।जानकारों के हवाले सेपता चल की स्व. कन्हैया लाल पांडे जी ने अंतिम बार इसकी रंगाई-पुताई 1996 में कराई थी। तब से से 27 वर्ष बीत गए जीर्णोद्धार व रंगाई-पुताई हुआ ही नहीं। शिक्षक भर्ती 2007 से ही बंद कर दिया गया , शिक्षकों के अभाव में शिक्षा की गुणवत्ता भी घटी लेकिन इसके बावजूद यहां छात्र संख्या लगभग 1600 थी। एक झटके में 1600 विद्यार्थियों के किस्मत से शिक्षा छीन ली गई। डीएवी प्रबंधन को 2 वर्ष तक न तो फीस बढ़ाने और न ही बोर्ड बदलने का निर्देश था, किंतु प्रबंधन सभी शर्तों को तोड़कर अप्रत्यक्ष फीस के सहारे अपना खजाना भरने में लगा है, परिणाम यह हुआ कि विद्यार्थी 2 वर्ष का इंतजार करने की बजाय या तो दूसरे विद्यालय में चले जा रहे हैं या फिर अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ने को विवश हैं। निगम प्रबंधन ने पूर्व में कार्यरत सरकारी शिक्षकों को डीएवी के विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए छोड़ दिया है। यह भारतीय इतिहास की पहली और बिल्कुल अनोखी घटना होगी जिसमें शिक्षक वेतन तो सरकार का लेंगे लेकिन सेवा प्राइवेट संस्था को देंगे। डीएवी की प्रबंधक/प्रधानाचार्या ने विद्यालय में ऐसे हालात पैदा कर दिए है कि विद्यार्थी 2 साल का इंतज़ार किये बिना ही विद्यालय छोड़ने को मजबूर हो गए है। माइक लेकर पूरी भीड़ में कहती हैं कि जो आदमी दोनों टाइम खाना खाता हो वह गरीब नही है। साथ ही सरकारी शिक्षकों को भी परेशान कर रखा है ।विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त सूचना के अनुसार सभी शौचालयों को बंद करा दिया गया है और ताज़ा घटनाक्रम में महिला शिक्षिकाओं को एकमात्र बाथरूम में जाने से रोक दिया गया है। बच्चों के बीच माइक पर तेज आवाज में शिक्षकों को बाथरूम जाने से रोकने पर अपमानित कुछ शिक्षिकाओं के आंसू निकल गए। शिक्षकों को बेइज्जत करने पर उनकी मानसिक स्थिति लगातार बिगड़ रही है और किसी भी समय भयंकर अप्रिय स्थिति उत्पन्न हो सकती है। शिक्षक जब कक्षाओं में पढ़ाते हैं तो बार-बार प्रधानाचार्या एवं उनके शागिर्द कक्षाओं में अवरोध उत्पन्न करते हैं, जिससे पढ़ाई बाधित भी होती है। शायद उनका लक्ष्य शिक्षकों को अक्षम सिद्ध करना भी है।डीएवी प्रबंधन अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति में यह भी भूल गया है कि ओबरा इंटर कॉलेज पर यूपी बोर्ड के आदेश लागू होते हैं- प्रार्थना बंद करा दी गई, विद्यालय अवधि को भी यूपी बोर्ड से अलग कर दिया गया, अंक-पत्र एवं टीसी वितरण अभी तक शुरू नहीं हो पाया है।अंक पत्र पर मुहर भी नही लगा है।डीएवी प्रधानाचार्य का हस्ताक्षर जिला विद्यालय निरीक्षक से प्रमाणित न होने पर अब उनका किसी भी कागजात पर हस्ताक्षर भी अवैध ही माना जाएगा। अभिभावक हैरान-परेशान हैं कि अपने नौनिहालों का प्रवेश अंक-पत्र एवं टीसी के बिना कैसे कराएं? लेकिन डीएवी प्रबंधन अपनी धुन में ही लगा है। जो भी हो डीएवी प्रबंधन ने निगम की शर्तों को तोड़ते हुए यूपी बोर्ड के नियमों की भी अवहेलना कर डाली है।परिणाम यह है कि हजारों बच्चे शिक्षा से वंचित हो गए ,शेष बचे हुए अंक-पत्र और टीसी न मिलने के कारण प्रवेश नहीं ले पा रहे । विद्यार्थियों का जमकर आर्थिक दोहन हो रहा है, साथ ही शिक्षकों को लगातार परेशान करने से उनकी मानसिक स्थिति बिगड़ रही है। समझ से परे है कि… क्या निगम के अधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं है ?? या फिर अधिकारीगण जानबूझकर अपनी आंखें बंद किए हैं। खैर जो भी हो स्वर्गीय कन्हैया लाल पांडेय के सपनों के ओबरा इंटर कॉलेज का ऐसा भयानक अंत और समाजसेवियों के साथ-साथ जिम्मेदारों की चुप्पी कल्पना से परे हैं और उनकी समाज सेवा के दावों पर बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह भी लग गया है