आखिर कार क्यों बेचा गया शिक्षा का मन्दिर
विंध्य ज्योति संवादाता विकास कुमार हलचल
ओबरा सोनभद्र। लगभग 1600 विद्यार्थियों की विशाल क्षमता वाले और 1964 में स्थापित ओबरा इंटरमीडिएट कॉलेज का अस्तित्व समाप्त करने के लिए जिम्मेदार वहां की जनता , समाजसेवी और पुरातन विद्यार्थी ही निकले । बता दें कि ओबरा क्षेत्र में स्थापित यह विद्यालय अपने गौरवशाली इतिहास के साथ सैकड़ों इंजीनियर और प्रशासकों का जन्मदाता रहा है। लगातार शिक्षकों की कमी, साफ- सफाई का अभाव और अधिकारियों की उपेक्षा को झेलते हुए अंततः एक षड्यंत्र के तहत इसको समाप्त करते हुए डीएवी को बेच दिया गया। आज भी यहां 1600 विद्यार्थी पंजीकृत हैं जबकि शिक्षकों की संख्या मात्र चार है। होना तो यह चाहिए था कि शिक्षकों की संख्या बढ़ाने के लिए नई भर्ती की जाती, क्योंकि 1998 से अब तक मात्र 4 शिक्षकों की भर्ती की गई और आज भी लगभग 89 शिक्षकों के पद खाली ही हैं। आश्चर्य इस बात का है कि इसकी समाप्ति को रोकने के लिए न तो समाज से कोई आगे आया और न ही पुरातन विद्यार्थी। सभी सोशल मीडिया पर मात्र अफसोस जाहिर कर रहे हैं, लेकिन यथार्थ के धरातल पर कोई भी सामने आने को तैयार नहीं। खुद को ओबरा इंटर कॉलेज का विद्यार्थी कहलाने वाले तमाम समाजसेवी , जनसेवक एवं नेतागण चुप और मौन हैं, जबकि कालेज के विद्यार्थियों की जिंदगी उन्हीं के सामने बर्बाद हो रही है। करोड़ों की संपत्ति वाले इस विद्यालय को प्रशासन ने षड्यंत्र करके मात्र ₹300 प्रतिमाह पर बेच दिया इसके साथ ही यहां कार्यरत शिक्षकों को डीएवी में संबद्ध कर दिया गया अर्थात वे वेतन तो सरकार का लेंगे लेकिन सेवा प्राइवेट स्कूल डीएवी में देंगे, जो विद्यार्थियों से जमकर धन वसूली करेगा। पहले जहां विद्यार्थियों का फीस मात्र ₹21 था उसे बढ़ाते हुए 7800 प्रतिमाह तक कर दिया गया है। इतना बड़ा अत्याचार होने के बाद भी लोकतंत्र के किसी भी स्तंभ से अभी तक विरोध का कोई भी स्वर दिखाई नहीं पड़ा। खैर जो भी हो एक संस्था जिसने तमाम विद्यार्थियों की जिंदगी को रोशन किया था आज उसकी खुद की रोशनी बुझ गई,
और समाज चुपचाप कायरों की तरह तमाशा ही देखता रहा।