खुखन्दू(देवरिया) रामप्रवेश शुक्ल। डीएसपी जियाउल हक घर ही नहीं गांव, जवार और रिश्तेदारों के लिए भी ताकत थे। जब भी थाने में किसी का मामला होता वह फोन कर
खुखन्दू(देवरिया)। डीएसपी जियाउल हक घर ही नहीं गांव, जवार और रिश्तेदारों के लिए भी ताकत थे। जब भी थाने में किसी का मामला होता वह फोन कर लोगों की मदद करते और न्याय दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे। यही वजह थी उनकी हत्या के बाद कई दिनों तक दरवाजे पर लोगों की भीड़ लगी रही। उनके डीएसपी बनने पर दादा ऐनुलहक ने पूरे गांव में मिठाई बटवाया था।
खुखुन्दू थाना क्षेत्र के जुआफर निवासी शमसुल हक व हाजरा खातून के दो बेटों में सबसे बड़े जियाउल हक वर्ष 2010 में डीएसपी के पद पर तैनात हुए। वर्ष 2012 में बिहार के सीवान निवासी परवीन आजाद से उनकी शादी हुई। हत्या से एक साल पहले ही यह शादी हुई थी। अभी वह 22 महीने तक ही नौकरी किये थे कि भीड़ ने उनकी हत्या कर दी।
इस घटना ने न सिर्फ उन्हें बल्कि पूरे गांव-जवार को झकझोर कर रख दिया था। इस मामले में बुधवार को सीबीआई की विशेष कोर्ट का फैसला आया तो पूरा गांव उनके दरवाजे पर उमड़ पड़ा। हर किसी का बस यही कहना था कि अब जाकर सकून मिला है।
डीएसपी बने तो बाबा ऐनुल हक ने बांटी थी मिठाई
दरवाजे पर मौजूद ग्रामीणों ने बताया कि जिआउल हक के डीएसपी बनने के बाद परिवार से लेकर गांव के लोगों में खुशी का ठिकाना नहीं रहा। गांव के वह पहले ऐसे युवक थे जो पुलिस अफसर बने थे। इस खुशी में उनके दादा ने ऐनुल हक ने घर पर मिठाई बनवाकर पूरे गांव में बंटवाया था। डीएसपी बनने के बाद वह थानों पर फोन कर गांव, जवार के लोगों की मदद करते थे। उनके फोन पर थानों पर लोगों को सम्मान व न्याय मिलता था।
इससे कुछ समय में ही वह घर ही नहीं गांव, जवार के लिए भी ताकत बन गये थे। लेकिन मार्च-13 में उनकी हत्या के बाद गांव,जवार में मातम छा गया। कई दिनों तक उनके दरवाजे पर लोगों की भीड़ जमी रही। जियाउल की हत्या के बाद पखवाड़े भर तक गांव में नेताओं का तांता लगा रहा।
जैसे हम रो रहे हैं वैसे ही रोयेंगे उनके भी परिजन
जियाउल हक की मां हाजरा खातून ने सजा होने पर प्रतिक्रिया में कहा कि बेटे को बड़ी मुसीबत से पाले थे। आज वह अपने बेटे को नहीं भूल पाये हैं। अगर वह होता तो परिवार की अलग ही स्थिति होती। वह कभी अपने को बड़ा अफसर नहीं समझता था और गांव के सभी लोगों की बहुत इज्जत करता था। गांव के लड़कों को पढ़ने को प्रेरित करता था। सजा ऐसी होनी चाहिए की वह आजीवन जेल में रहे, ऐसा न हो कि वह 10 साल में छूटकर चले आये। जैसे हम रो रहे हैं वैसे ही उनके मां, बाप, बीबी,बीच्चे रोयेंगे तब उन्हे अपनी गलती का एहसास होगा।
बेटे की मौत के साथ बिखर गया परिवार का सपना
जियाउल हक के पिता शमशुल हक ने कहा कि बड़ा बेटा अधिकारी बना तो लगा कि परिवार की गरीबी चली जाएगी। जिआउल जब भी गांव आता था तो बाजार से पैदल ही गांव जाता था। वह छोटे भाई को पढ़ा कर अधिकारी बनाना चाहता था। उसने पत्नी को पढ़ा कर डाक्टर बनवाया था। उसकी हत्या के बाद से पूरा परिवार ही बिखर गया। बेटे के जाते ही रिश्तेदारों और बहू ने भी मुंह मोड़ लिया।
अब छोटे लड़के सोहराब अली की कमाई के भरोसे घर का खर्च चल रहा है। जियाउल की मौत के बाद जो पैसा मिला था वह उसकी शादी में लिये कर्ज तथा उसके व पत्नी के इलाज में खर्च हो गया। दोनों बीमारी से परेशान हैं। चलने में दिक्कत होने से आटो रिजर्ब कर दवा कराने जाना पड़ता है। दुख इस बात का है कि जियाउल का कोई संतान भी नहीं है, अगर होता तो उसी को लेकर हम खुश रहते हैं।
जियाउल की हत्या के बाद घर पहुंचे थे राहुल, अखिलेश समेत कई नेता
जिआउलहक का शव जब जुआफर पहुंचा तो लोग तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को बुलाने की जिद पर अड़ गए। जिसके बाद अखिलेश यादव जुआफर पहुंचे थे। बाद में यहां राहुल गांधी ने भी पहुंच कर पीडि़त परिवार को सांत्वना देते हुए न्याय का भरोसा दिया था। इसके साथ ही बड़े नेताओं का कई दिनों तक यहां आने-जाने का क्रम लगा रहा। प्रदेश सरकार ने जिआउल हक की पत्नी परवीन आजाद को लखनऊ में ओएसडी की नौकरी दी थी जबकि भाई सोहराब को आईजी आफिस में लिपिक की नौकरी मिली थी।
गरीबी के मर्म को महसूस करते थे जियाउल हक
बेहद गरीबी में पढ़कर जियाउल हक डिप्टी एसपी बने थे। उनके पिता शमसुल हक मुंबई में एक होटल में काम करते थे। जियाउल ने प्राथमिक शिक्षा पास के परिषदीय विद्यालय जैतपुरा से ग्रहण की थी। उच्च प्राथमिक शिक्षा कृषक लघु माध्यमिक विद्यालय सिसई से एवं हाई स्कूल की शिक्षा शिवाजी इंटर कॉलेज को खुखुन्दू से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किए।
इसके बाद इंटरमीडिएट की शिक्षा ग्रहण करने के लिए महाराजा अग्रसेन इंटर कॉलेज देवरिया चले आए। स्नातक और परास्नातक की पढ़ाई इलाहाबाद विवि से की। अपने पहले ही प्रयास में वह डिप्टी एसपी परीक्षा में सफल हो गए। वह 2005 बैच के लिए हुई परीक्षा में बैठे थे। इसका रिजल्ट 2008 में निकला था। जनवरी 2010 मुरादाबाद में जियाउल ट्रेनिंग हुई थी। 22 माह बाद पहली पोस्टिंग कानपुर में हुई थी।
जियाउल के हत्यारों को सजा मिलने पर बोले ग्रामीण
आज जियाउल होते तो हम लोगों की मदद करते। कहीं जरूरत पड़ती तो फोन कर देते थे। बच्चों को उनसे पढ़ाई में मदद मिलती। जैसा कानून ने उचित समझा वैसा फैसला दिया है। दुख इस बात का है कि वह बहुत कम समय तक नौकरी कर पाए थे। आज वह होते तो एडिशनल एसपी बन गए होते। उनकी मौत ने हम लोगों को बहुत आहत किया था। दोषियों को उम्र कैद की सजा से हमे खुशी है।
हातिम, सेवानिवृत्त शिक्षक।
जियाउल हक से घटना के तीन दिन पहले रिश्तेदारी के एक मामले में पैरवी करने के लिए हमसे बात हुई थी। हमारे इलाके में उन पर नाज था। वह मुस्कुरा कर बात करते थे। उस तरह का लड़का होना मुश्किल है। आज मजबूत लोगों की सभी बात सुनते हैं, लेकिन वह कमजोर और गरीब आदमी की बात सुनकर उन्हे न्याय दिलाते थे। किसी के यहां कुछ पड़ता था तो वह तुरंत फोन करते थे। कोर्ट के फैसले से उन्हे सकून मिला है।
अली शेर खां, ग्रामीण।
जब जियाउल हक भाई की हत्या हुई उस वक्त हम नाबालिग थे। उनके बारे में गांव के लोग बताते फक्र करते हैं। उन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर गांव, जवार का नाम रोशन किया था। उनकी हत्या से पूरा गांव दुखी हो गया था। उनसे प्रेरणा लेकर वह तैयारी कर रहे हैं, उनका पूरा प्रयास है कि गांव में वहीं रौनक फिर से आये। हत्या का केस तो बहुत है, लेकिन इसको तवज्जो देकर सजा सुनाई गयी इससे उन्हे खुशी है।
दानिश खां, युवक।
सजा सुनाने का फैसला आने के बाद से जियाउल की याद ताजा हो गयी। वह उन्हे विश्वास दिलाये थे कि अपने बेटे को हाई स्कूल तक पढ़ायें, इसके बाद उसे आगे की पढ़ाई के लिए वह उसे भेज देंगे। हत्या के बाद एक महीने तक वह चैन की नींद नहीं सो पाये थे। फैसला आने से पर हम सभी को काफी सकून मिला है। जो जैसा किया उसे उसकी सजा मिली है।
नुरूल हसन, ग्रामीण।
हत्यारों ने एक बुजुर्ग मां, बाप के सपने को चकनाचूर कर दिया। एक झटके में पूरा परिवार विखर गया। अब सजा मिलने से उनके भी परिजनों को खून के आंसू रोने पड़ेंगे। इससे अन्य लोग भी सबक लेंगे। जियाउल हक गांव, जवार की शान थे। वह नई पीढ़ी के गांव के लड़कों को आगे बढ़ने में मदद करना चाहते थे, लेकिन उन्हे हमसे छींन लिया गया।
मो. जिशान, युवक।