स्कूल में मोबाइल फोन चेकिंग की आड़ में छात्रों के कपड़े उतरवाकर उन्हें परेशान करने और आपत्तिजनक वीडियो बनाने की आरोपी एक सीनियर महिला टीचर को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट से झटका लगा है। हाईकोर्ट ने उसकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी। इसके साथ ही इंदौर पुलिस कमिश्नर को एक महीने में इस केस की जांचकर रिपोर्ट सौंपने को कहा है।
हाईकोर्ट की इंदौर के जस्टिस प्रेम नारायण सिंह की बेंच ने यह भी कहा कि जांच एजेंसी इस केस में पॉक्सो एक्ट के प्रावधानों को लागू करने में विफल रही है। कोर्ट ने अब इंदौर पुलिस कमिश्नर को इस मामले की जांच करने का निर्देश दिया है। वर्तमान मामले में हाईकोर्ट ने आरोपी महिला टीचर को अग्रिम जमानत देने से इनकार करते हुए कहा, “आवेदक का कृत्य क्रूर प्रकृति का है और एक टीचर के रूप में उसका कृत्य अत्यधिक आपत्तिजनक है।”
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लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने कहा, “यह भी उल्लेखनीय है कि अभियोजन पक्ष की आपत्ति के बावजूद, संबंधित अभियोजन एजेंसी ने पॉक्सो एक्ट के प्रावधानों पर विचार नहीं किया है और इस पहलू पर केस डायरी में कुछ भी उल्लेख नहीं किया गया है, इसलिए इंदौर पुलिस कमिश्नर को यह निर्देश दिया जाता है कि वे पॉक्सो एक्ट, 2012 के मद्देनजर इस मामले की जांच करें और एक महीने के भीतर इस अदालत की रजिस्ट्री के समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत करें।”
याचिकाकर्ता महिला टीचर पर इंदौर के एक स्कूल में मोबाइल चेक करने के बहाने नाबालिग बच्चों को परेशान करने का आरोप लगाया गया था। आरोपों में किशोर न्याय अधिनियम की धारा 75 और बीएनएसएस की धारा 76 और 79 के तहत अपराध शामिल थे।
अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि आवेदक की हरकतें न केवल क्रूर थीं, बल्कि यौन रूप से भी गलत थीं, जिसके कारण पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज किया जाना चाहिए।
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हालांकि, इस पर आरोपी टीचर के वकील ने यह दलील दी कि वह निर्दोष है और उसे मामले में झूठा फंसाया गया है। वकील ने कहा कि वह एक प्रतिष्ठित परिवार से आती है उसने एक सीनियर टीचर के रूप में पहचान बनाई है। वकील ने कहा कि उसका पति सरकारी सेवा में कार्यरत है और उसका बच्चा मेडिकल करियर बना रहा है।
याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने जय प्रकाश सिंह बनाम बिहार राज्य और अन्य (2012) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित अग्रिम जमानत को नियंत्रित करने वाले कानूनी सिद्धांतों का हवाला दिया और इस बात पर प्रकाश डाला कि अग्रिम जमानत एक “असाधारण विशेषाधिकार” है और इसे केवल “असाधारण मामलों” में ही दिया जाना चाहिए।