माध्यमिक शिक्षा परिषद क नियमों की उड़ाई जा रही है सरेआम धज्जियां।
विंध्य ज्योति/विकास कुमार हलचल
ओबरा सोनभद्र। ओबरा इंटर कॉलेज के अस्तित्व समाप्ति के साथ ही यह यक्ष प्रश्न उठने लगा है कि आदिवासी एवं गरीब विद्यार्थियों के लिए अब क्या विकल्प बचे हैं? उल्लेखनीय है कि यहां से 40 किलोमीटर की परिधि में बालकों के लिए एक भी राजकीय इंटर कॉलेज नहीं है और प्राइवेट विद्यालयों की फीस दे पाना गरीब विद्यार्थियों की क्षमता से बाहर है।कई बार ओबरा के जागरूक नागरिक पत्राचार एवं हस्ताक्षर अभियान द्वारा ओबरा में एक राजकीय इंटर कॉलेज की मांग कर चुके हैं, लेकिन भूगर्भ संपदा संपन्न सबसे ज्यादा राजस्व देने वाले इस जिले के महत्वपूर्ण नगर में एक जीआईसी की मांग आज तक सरकार पूरी नहीं कर सकी है। ओबरा इंटर कॉलेज के प्रांतीयकरण की प्रक्रिया 2022 में जब प्रारंभ होकर तीव्र गति पकड़ी और जेडी ने एक बाबू को परमानेंट करके इसी काम मे लगा दिया तो लगा कि वर्ष 2023 से इसका जीआईसी बनना तय है। अचानक एक माह पूर्व निगम प्रबंधन ने हजारों गरीब विद्यार्थियों की उम्मीद को तोड़ते हुए ओबरा इंटर कॉलेज का भूमि भवन एवं सरकारी शिक्षकों को डीएवी के हवाले कर दिया । निगम के इस अप्रत्याशित निर्णय से लगभग 20 गांव के बच्चों को निशुल्क शिक्षा का सपना चकनाचूर हो गया क्योंकि इन गांव के बच्चे ओबरा नगर में कमरा किराए पर लेकर अच्छी शिक्षा के लिए इसी विद्यालय पर ही निर्भर थे। शायद यही कारण है कि डीएवी बनने के बाद इस विद्यालय के 90 परसेंट बच्चे अप्रैल माह में इस विद्यालय में नाम लिखाने के बावजूद पढ़ाई छोड़ चुके हैं और अपनी टीसी कटवा रहे हैं। विद्यार्थियों के इतनी भारी मात्रा में पलायन के पीछे डीएवी प्रबंधन का अनुचित व्यवहार एवं जानबूझकर बाहर करने की नीति की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है वास्तविकता जो भी हो लेकिन विद्यार्थियों के हित में आवाज उठाने वालों की लंबी चुप्पी आश्चर्य में डाल रही है। इसके बावजूद विद्यार्थियों को कहीं ना कहीं से चमत्कार की उम्मीद बनी है यह काबिले तारीफ है।